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मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाओं के बीच पूर्व मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया का नाम फिर उछला, बामनिया को कुर्सी बचाने की चुनौती

Banswara
मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाओं के बीच पूर्व मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया का नाम फिर उछला, बामनिया को कुर्सी बचाने की चुनौती
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गहलोत सरकार में गुटबाजी और प्रदेश में चल रहे राजनीतिक घमासान से बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में भी सियासी बाजार गरम है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलेट खेमे की जुबानी जंग ने यहां ठंडे में पड़े नेताओं की सत्ता सुख वाली उम्मीदों को जगा दिया है।

कांग्रेस विधायक खुद को पार्टी का सिपाही मानते हुए सरकार से अपेक्षा लगाए हुए हैं। इधर, बांसवाड़ा जिले में पूर्व केबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया के एक बार फिर मंत्रिमंडल में शामिल होने जैसी चर्चाओं का बाजार गरम है।

वहीं सरकार में संभाग को नेतृत्व दे रहे राज्यमंत्री अर्जुन बामनिया मंत्री पद को बनाए रखने के लिए संघर्षरत हैं। कुशलगढ़ की निर्दलीय विधायक रमीला खड़िया और डूंगरपुर जिले के बीटीपी विधायक राजकुमार रोत भी इस जंग में खुद का भविष्य ढूंढ रहे हैं। हालांकि, प्रदेश में सचिन गुट, निर्दलीयों और बड़े कांग्रेस नेताओं की सियासत के बीच जनजाति जिलों की आवाज फिलहाल दबी हुई है। लेकिन, समय बदलते देर भी नहीं लगता। देखना है कि राजनीतिक समीकरणों का ऊंट किस ओर करवट लेता है।

राज्यमंत्री पद बचाए रखने की दौड़ में विधायक अर्जुन बामनिया।
राज्यमंत्री पद बचाए रखने की दौड़ में विधायक अर्जुन बामनिया।

भाजपा की तरह सोच सकती है कांग्रेस

सियायती घमासान में बांसवाड़ा और डूंगरपुर से सचिन समर्थकों को सांप सूंघा हुआ है। सत्ता में बने हुए मुख्यमंत्री गहलोत के राजनीतिक अनुभव से यहां के कांग्रेस नेताओं का विरोध दबा हुआ है। लेकिन, नेताओं का सत्ता सुख से इनकार भी नहीं है। ऐसे में जनजाति जिलों में भाजपा के पुराने अनुभव को देखते हुए कांग्रेस की सरकार नए निर्णय ले सकती है।

भाजपा की पिछली वसुंधरा सरकार में यहां पहले ढाई साल तक जीतमल खांट को राज्यमंत्री बनाए रखा। शिकायतों के हवाले से खांट को सत्ता से हटाकर धनसिंह रावत को राज्यमंत्री बनने का मौका दिया था। इससे दो परस्पर नेताओं की कुंठा का समाधान ही नहीं हुआ था बल्कि दोनों खेमों के समर्थकों को भी पार्टी ने ठंडा कर दिया था। ये बात अलग है कि विधानसभा चुनाव ने सभी समीकरणों को विफल कर दिया था।

राजनीति में मालवीया का कद बड़ा

उदयपुर संभाग के जनजाति बाहुल्य वाले विधानसभा क्षेत्रों में महेंद्रजीत सिंह मालवीया का राजनीतिक कद अन्य नेताओं की अपेक्षा बड़ा है। पहले कांग्रेस राज में मंत्री रहे मालवीया बीते ढाई साल में सरकार से दूर है। उनकी यह चुप्पी सरकार के लिए चिंता का विषय है। हालांकि, पार्टी में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने उन्हें झुनझुना पकड़ा दिया है, लेकिन मालवीया की व्यक्तिगत मंशा मंत्रिमंडल में शामिल होने की है। यह बात वह खुलकर तो नहीं कहते, लेकिन बिना बोले भी बहुत कुछ समझ आता है।

सरकार इस दुविधा में है कि चुप बैठे मालवीया को मौका देते हैं तो बामनिया के हिस्से में क्या जिम्मेदारी दी जाएगी। वहीं बांसवाड़ा की राजनीति पर चिंतन करें तो यहां भी कांग्रेस दो फाड़ है। बांसवाड़ा में सत्ता से नाखुश कांग्रेस समर्थकों की सुस्ती इसी का नतीजा है। ऐसे स्थानीय बड़े नेता अब पार्टी के कार्यक्रमों से भी दूरियां बना रहे हैं। साथ ही गलतियों की समीक्षा भी कर रहे हैं।

मालवीया व बामनिया के बीच राजनीति

बांसवाड़ा जिले की राजनीति पूर्व मंत्री मालवीया और वर्तमान राज्यमंत्री बामनिया के ईर्द-गिर्द घूम रही है। यूं कहें तो बांसवाड़ा और बागीदौरा विधानसभा क्षेत्र में ही कांग्रेस की राजनीति जिंदा है। वहीं गढ़ी, घाटोल और कुशलगढ़ विधानसभा में कांग्रेस की राजनीति ठंडी पड़ी है। यही वजह है कि पुलिस कर्मचारी पर थप्पड़ जड़ने वाली कुशलगढ़ की निर्दलीय विधायक रमीला खड़िया के खिलाफ या समर्थन में कोई कांग्रेसी नेता खड़ा नजर नहीं आया। इसकी वजह खड़िया का सरकार को मिला हुआ समर्थन भी है।

यह कहती है राजनीतिक गणित

राजनीतिक समीकरण देखें तो बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में कुल 9 विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें तीन सीटें कांग्रेस की हैं, जबकि तीन पर भाजपा है। वहीं दो सीट पर बीटीपी और एक सीट पर निर्दलीय है। वर्तमान में कांग्रेस के पास बांसवाड़ा, बागीदौरा और डूंगरपुर विधानसभा सीट है। यहां अर्जुन बामनिया, महेंद्रजीत सिंह मालवीया और देवेंद्र कटारा विधायक हैं। दूसरी ओर बांसवाड़ा की कुशलगढ़ निर्दलीय सीट है। वहीं घाटोल और गढ़ी विधायक भाजपा से हैं। डूंगरपुर की सागवाड़ा और चौरासी सीट बीटीपी के पास है, जबकि आसपुर सीट से भाजपा का विधायक है।

मालवीया की राह में रोड़ा

उदयपुर संभाग की जनजाति राजनीति पर गौर करें तो उदयपुर के पूर्व सांसद रघुवीर मीणा यहां बांसवाड़ा के बागीदौरा विधायक मालवीया की राह में बड़ा रोड़ा हैं। कांग्रेस की केंद्रीय समिति के सदस्य मीणा की अशोक गहलोत से नजदीकियां हैं। चूंकि मीणा विधानसभा चुनाव में खुद की हार का एक कारण मालवीया को भी मानते हैं। ऐसे में उनकी असहमति मालवीया को आगे बढ़ने से रोक सकती है। इसी तरह मालवीया विरोधी राजनीतिक धुरंधरों से बामनिया की नजदीकियां हैं, जो राह में बाधा है।

जैसा आदेश करे आलाकमान

मंत्रिमंडल में स्थान मिलने वाली उम्मीदों को लेकर बागीदौरा विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीया ने कहा कि पार्टी के आलाकमान को जो भी आदेश होगा उन्हें स्वीकार है। उनकी ओर से इस दौड़ में कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। अभी तो वह मानसून के साथ खेती करने में व्यस्त हैं।




By Bhaskar

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