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रमजान के बाद मोहर्रम दूसरा सबसे पाक महीना, मुस्लिम ही नहीं हिंदू भी वधेरते हैं जुल्फिकार पर नारियल

रमजान के बाद मोहर्रम दूसरा सबसे पाक महीना, मुस्लिम ही नहीं हिंदू भी वधेरते हैं जुल्फिकार पर नारियल
@HelloBanswara - -

Banswara September 21, 2018 हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में यौमे आशुरा के एक दिन पहले गुरुवार को शाम की नमाज के बाद पृथ्वीगंज स्थित मस्जिद से जुल्फिकार का जुलूस निकाला गया। इससे पहले परंपरागत सिंधीवाड़ा पंच (सिंधी समाज) द्वारा जुल्फिकार बांधने की रस्म अदा की गई। जुल्फीकार बांधने का कार्य गौरी परिवार के शफीक गौरी और रफीक गौरी के द्वारा सालों से किया जाता है। बताया जाता है कि जब से शहर में जुल्फिकार बांधे जाने शुरू हुए हैं तबसे यह कार्य परिवार द्वारा ही किया जाता आ रहा है। जैसे ही यह रस्म पूरी हुई मस्जिद के बाहर जुल्फिकार के दीदार के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा । 

सिंधी समाज द्वारा जुल्फिकार को बाहर लाया गया तो एक स्वर में या हुसैन, या हुसैन से पृथ्वीगंज चौक गूंज उठा। उसके बाद जुल्फिकार को चौक में लाया गया जहां सात फेरों की रस्म अदा की गई। बाद में ढोल-नगाड़ों की मातमी धुन के साथ जुल्फिकार का जुलूस शहर गश्त के लिए निकला। जो परंपरागत पृथ्वीगंज से रवाना होकर कस्टम चौराहा, पुराना बस स्टैंड, गांधीमूर्ति, पीपली चौक, पाला रोड (जामा मस्जिद), कंधारवाड़ी व मकरानीवाड़ा मस्जिद, कालिका माता, गोरख ईमली होते हुए मध्यरात्रि वापस पृथ्वीगंज पहुंचा। जुल्फिकार के जुलूस के बाद मध्यरात्रि को पृथ्वींगंज मस्जिद से मुकामी व मन्नती मोहर्रमों का जुलूस शहरगश्त के लिए निकला जो परंपरागत मार्गों से होते हुए तीसरे पहर वापस पृथ्वीगंज आकर समाप्त हुआ। जुलूस के दौरान शहर काजी वाहिद अली, अंजुमन सदर नईम शेख, तालिम सैकेट्री सादिक अफगानी, नायब सदर शरीफ पहलवान, तुफैल अहमद सिंधी, गुलाम मोहम्मद खोखर आदि मौजूद थे। 

बांसवाड़ा. शहर में मुस्लिम समाज की ओर से गुरुवार रात को निकाले गए जुल्फिकार के जुलूस में शामिल मुस्लिम समाजजन। शुक्रवार को मोहर्रम का जुलूस निकाला जाएगा और ताजियों को ठंडा करेंगे। 

हर मस्जिद व मन्नती मोहर्रम पर सलामी व लोबान (धूप की रस्म) 

जुल्फिकार के जुलूस की खास बात यह रहती है कि मुकामी मोहर्रम पाला मस्जिद, कंधारवाड़ी, मकरानीवाड़ा व गोरखईमी मस्जिदों के अलावा जहां-जहां भी मन्नती मोहर्रम होते हैं वहां जुल्फिकार सलामी व लोबान (धूप) के लिए जाती है और जैसे ही यह रस्म अदा होती है जुल्फिकार अपने गतंव्य की ओर बढ़ती रहती है जहां लोगों में अलग ही जोश रहता है और या हुसैन-या हुसैन की अनुगूंज रहती है। जगह-जगह शर्बत की सबीलें लगाई गई।जैसे ही जुलूस रवाना हुआ जुल्फिकार के आगे नारियल वघेरने, फूल-माला चढ़ाने की होड़ मची रही। 

इसलिए मनाया जाता है मोहर्रम : मोहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है, जो चांद के हिसाब से चलता है। इस्लाम धर्म में रमजान के बाद मोहर्रम के महीने को दूसरा सबसे पाक महीना माना जाता है। तकरीबन 1400 साल पहले सन् 61 हिजरी के मोहर्रम का महीना था, जब हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके 72 साथियों के साथ कर्बला इराक के बयाबान में जालिम यजीदी फौज ने शहीद कर दिया था। इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिए बनाए जाते हैं। मुस्लिम समाज के लोग चांद की 1 तारीख से 10 तारीख तक 10 दिन रोज़ा भी रखते हैं। 

शहर में मुस्लिम समाज की ओर से गुरुवार रात को निकाले गए जुल्फिकार के जुलूस में शामिल समाजजन।

 

By Bhasker

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