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7 टर्निंग पॉइंट: वर्ल्ड वॉर-II ना होता तो कुछ साल और गुलाम रहते हम

7 टर्निंग पॉइंट: वर्ल्ड वॉर-II ना होता तो कुछ साल और गुलाम रहते हम
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7 टर्निंग पॉइंट: वर्ल्ड वॉर-II ना होता तो कुछ साल और गुलाम रहते हम Saven Turning Point Of Indian Independence

National - साल 1920 का असहयोग आंदोलन, 1930 की दांडी यात्रा और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन जैसे मूवमेंट्स के कारण भारत की आजादी की राह आसान तो हो गई, लेकिन इस संघर्ष में असली टर्निंग पॉइंट कुछ और भी थे। इन टर्निंग पॉइंट्स से गुजरकर ही भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो सका। आजादी के इस पर्व पर मीडिया ने इतिहास की किताबों से ढूंढ निकाले ऐसे ही 7 टर्निंग पाइंट :
> यह हुआ था...
साल 1939 में शुरू हुआ सेकंड वर्ल्ड वॉर 1945 में जापान पर न्यूक्लियर बॉम्बिंग के साथ खत्म हुआ था। छह साल चले इस युद्ध में हिटलर की नाजी सेना की बुरी तरह हार हुई, लेकिन जीत के बावजूद ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों की इकोनॉमी बर्बाद हो गई।
> ऐसा हुआ इसका असर...
सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद ब्रिटेन की इकोनॉमी पर अब भारत भारी पड़ने लगा था। इतिहासकार डॉ. सुष्मित कुमार की बुक Modernization of Islam and the Creation of a Multipolar World Order के अनुसार अगर उस समय देश में आजादी का कोई आंदोलन नहीं चल रहा होता, तब भी अंग्रेज 1947 या इसके आसपास भारत को छोड़ जाते। ऐसे में अगर सेकंड वर्ल्ड वॉर नहीं हुआ होता तो हो सकता था कि हमें 1947 में आजादी नहीं मिलती। हमें कुछ साल और गुलाम रहना पड़ सकता था।
> एक्स्ट्रा शॉट :
वर्ल्ड वार के बाद अंग्रेजों ने न केवल भारत को, बल्कि इसी दौरान उन देशों को भी आजाद कर दिया जहां आजादी के लिए कोई आंदोलन नहीं चल रहा था, जैसे जॉर्डन (1946), फलस्तीन (1947), श्रीलंका (1948), म्यांमार (1948) और इजिप्ट (1952)। युद्ध में तबाही झेलने वाले अन्य देशों जैसे फ्रांस ने 1949 में लाओस और 1953 में कम्बोडिया को आजाद कर दिया। नीदरलैंड्स ने 1949 में ईस्ट इंडीज के कई देशों के साथ-साथ इंडोनेशिया को आजाद किया।


> यह हुआ था...
बैरकपुर छावनी में मार्च 1857 में चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में मंगल पांडे ने बगावत की थी। यह बगावत 10 मई 1857 को मेरठ होते हुए कई छावनियों में पहुंच गई। इसके साथ कई देसी रियासतों के शासक और आम लोग भी इस क्रांति से जुड़ते चले गए। हालांकि प्रॉपर कॉर्डिनेशन और लीडरशिप की कमी के चलते यह क्रांति डेढ़ साल के भीतर ही दबा दी गई।
> ऐसा हुआ इसका असर...
1857 की क्रांति भले ही विफल हो गई, लेकिन भारतीय मन पर इसका गहर असर पड़ा। किसी विदेशी दुश्मन के खिलाफ पहली बार शासक और जनता साथ आए। पहली बार यह एहसास हुआ कि शोषण से मुक्ति पाने के लिए अंग्रेजों से मुक्ति ही आखिरी रास्ता है। इसी सोच ने अाखिरकार बाद में चले आजादी के आंदोलन को डायरेक्शन दी अौर हम आजाद हो सके।
> एक्स्ट्रा शॉट...
1857 की क्रांति के ठीक पहले उत्तर भारत के अनेक गांवों में चपाती आंदोलन चलाया गया था। इसमें चपातियां एक गांव से दूसरे गांव पहुंचाई जाती थीं। हालांकि यह किसने शुरू किया था और इसका असली मकसद क्या था, यह कभी पता नहीं चल पाया। लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह क्रांति में उस गांव की भागीदारी का संकेत था।

> यह हुआ था...
1880 तक अाते-आते देश में इंग्लिश एजुकेशन सिस्टम से एजुकेटेड होने वाले लोगों की एक पूरी पीढ़ी तैयार हो चुकी थी। इसी दौर में ब्रिटेन के रिटायर्ड सिविल सर्विस ऑफिसर एओ ह्यूम के दिमाग में ऐसी संस्था का गठन करने का विचार आया जो इन इंग्लिश एजुकेटेड इंडियन्स की अंग्रेजी शासन में भागीदारी बढ़ा सके। इसी मकसद ने उन्होंने 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की।
> ऐसा हुआ इसका असर...1857 की क्रांति की विफलता के अगले करीब 40 सालों तक देश में एक तरह से राजनीतिक चुप्पी छाई रही। ऐसे में कांग्रेस उन लोगों की आवाज बनी जो देश में राजनीतिक सुधारों की मांग कर रहे थे। 1915-16 में गांधीजी के इससे जुड़ने के बाद कांग्रेस ने स्वतंत्रता के लिए चले तमाम आंदोलनों की अगुवाई की और देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
> एक्स्ट्रा शॉट...
कांग्रेस की पहली बैठक 28 दिसंबर 1885 को मुंबई के गाेकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुई थी। व्योमेश चंद्र बैनर्जी को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया। बैनर्जी पेशे से वकील थे और ब्रिटिश पार्लियामेंट के लिए चुनाव लड़ने वाले पहले भारतीय भी।


> यह हुआ था...
बिहार के चम्पारण में नील की खेती करने वाले किसानों पर स्थानीय जमींदारों के साथ मिलकर अंग्रेज काफी जुल्म ढहा रहे थे। इन किसानों के समर्थन में गांधी 10 अप्रैल 1917 को चम्पारण पहुंचे। इस बीच, स्थानीय अंग्रेज कमिश्नर ने उन्हें चम्पारण छोड़ने या खामियाजा भुगतने की धमकी दी। बैरिस्टर गांधी ने चम्पारण छोड़ने से मनाकर सत्याग्रह करने का फैसला लिया। सैकड़ों किसान गांधी के समर्थन में साथ आ गए। उनके इन प्रयासों का ही नतीजा था कि अंग्रेज सरकार को नया कानून बनाना पड़ा जिससे नील की खेती करने वाले किसान कानूनन उन खेतों के मालिक बन सके।
> ऐसा हुआ इसका असर...
चम्पारण का नील सत्याग्रह कहने को एक छोटी-सी घटना थी, लेकिन इसने भारत को वह गांधी दिया जो बाद में हमारे फ्रीडम मूवमेंट की सबसे बड़ी आवाज बन सका। चम्पारण जाने से पहले वे केवल बैरिस्टर एम के गांधी थे, लेकिन लौटे तो सत्याग्रही गांधी के तौर पर। चम्पारण के आंदोलन ने ही देश को सत्याग्रह नामक मंत्र दिया जो आजादी के लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार साबित हुआ।
> एक्स्ट्रा शाॅट ...
इस पहले सत्याग्रह में जो लोग गांधीजी के साथ चम्पारण गए थे, उनमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी थे जो आजादी के बाद देश के पहले राष्ट्रपति बने।
> यह हुआ था..
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों लोग वैसाखी मनाने के लिए एकत्र हुए थे। उसी समय कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर ने अपने सैनिकों को पूरे बाग को घेरकर निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने का हुक्म दिया। केवल 10 मिनट तक चले इस कत्लेआम में आधिकारिक तौर 369 लोग मारे गए। हालांकि अनधिकृत आंकड़ों के अनुसार मारे गए लोगों की संख्या एक हजार से भी ज्यादा थी।
> ऐसा हुआ इसका असर...
इस घटना से उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरा देश हिल उठा। दुनियाभर के मीडिया में इस हत्याकांड की खुलकर निंदा हुई। इस घटना के लिए बने जांच आयोग की रिपोर्ट पर जिम्मेदार जनरल डायर को सख्त सजा देने के बजाय केवल पद से हटाने का फैसला हुआ। इससे भी भारतीयों में यह संकेत गया कि वे अंग्रेजों के शासन में न केवल असुरक्षित हैं, बल्कि उन्हें न्याय की भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इससे लोगों में आजादी की जो छटपटाहट पैदा हुई, उसने अंतत: स्वाधीनता के लिए चले संघर्ष में अहम रोल निभाया।
> एक्स्ट्रा शॉट...
उधमसिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन में माइकल ओ डायर की गोली मारकर हत्या कर दी। इस तरह उन्होंने 21 साल बाद जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया। माइकल ओ डायर जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय पंजाब प्रांत का लेफ्टिनेंट गर्वनर था और उसने गोलियां चलाने का हुक्म देने वाले कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर का बचाव किया था।
> यह हुआ था...
31 दिसंबर 1929 की रात को लाहौर में रावी नदी के किनारे कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा फहराकर ब्रिटिश साम्राज्य से भारत की पूर्ण आजादी (पूर्ण स्वराज) का प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस ने पूरे देश की जनता से आह्वान किया कि वह 26 जनवरी (1930) को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाए। इस दिन देशभर में जगह-जगह तिरंगे फहराकर पूर्ण स्वराज का जश्न मनाया गया।

> ऐसा हुआ इसका असर...
इस प्रस्ताव से गांधीजी और कांग्रेस के लिए नया लक्ष्य मिला- पूर्ण आजादी। इससे पहले तक कांग्रेस और अन्य सभी दल ब्रिटिश राज के तहत ही भारत की जनता को अधिकार दिए जाने का मांग करते आ रहे थे। लेकिन 31 दिसंबर 1929 के बाद कांग्रेस की फिलोसॉफी और आंदोलन की दिशा ही बदल गई।
> एक्स्ट्रा शॉट...
गजलकार हसरत मोहानी ने सबसे पहले 1921 में कांग्रेस की एक बैठक में पूर्ण स्वराज की मांग की थी। लेकिन उस समय उनकी इस मांग को अनसुना कर दिया गया। 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा भी सबसे पहले हसरत मोहानी ने ही दिया था।
> यह हुआ था...
1945 में ब्रिटेन में हुए आम चुनावों में क्लेमेंट एटली की अगुवाई में लैबर पार्टी ने इतिहास की सबसे बड़ी विजय हासिल की थी। इसमें विंस्टन चर्चिल की कंजरवेटिव पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी।
> ऐसा हुआ इसका असर...
चर्चिल घोर गांधी विरोधी थे। वे कई बार कह चुके थे कि उन्हें 'गांधी' शब्द से ही नफरत है। तो उनके हारने से ब्रिटिश पॉलिटिकल सर्कल में गांधी विरोध का असर कम हाे गया। इसके अलावा लैबर पार्टी राजनीतिक और मानवीय सुधारों के प्रति काफी सेंसेटिव थी। उसके सत्ता में आने के बाद भारत सहित अन्य औपनिवेशिक राज्यों को मुक्त करने का माहौल बनने लगा। इसका नतीजा भारत और दूसरे कई देशों की आजादी के रूप में आया। अगर लैबर पार्टी सत्ता में नहीं आती तो हो सकता था कि भारत को आजाद होने में कुछ साल और लग जाते।
> एक्स्ट्रा शॉट...
अक्खड़ मिजाज वाले विंस्टन चर्चिल अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने 20 से भी ज्यादा किताबें लिखीं। उन्हें 1953 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया था।-bhaskar

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