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Ghotiya Amba

Ghotiya Amba
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प्राक्रतिक सुन्दरता से भारपुर इस स्थान पर हर वर्ष मेला लगता है जिसके कारण यह स्थान काफी प्रख्यात है. 

घोटियाँ आम्बा यह वो पवित्र स्थल है जहाँ  पांडव अपने बनवास के दौरान अपना काफी समय इस स्थान बिताया था. यहाँ पर भीम के द्वारा गदा से पहाड़ी पर प्रहार किया था जिससे वहां पर झरना निकला है जो आज भी है. यहीं पर पांडवों ने ऋषियो को केलो के पत्तो पर भोजन करवाया था वह केलो के पेड़ आज भी वही है ।


राजस्थान, गुजरात और मालवा के आदिवासी क्षेत्रों में दूर-दूर तक प्रसिद्ध लोक तीर्थ घोटिया आम्बा लोक आस्था और श्रद्धा का वह केन्द्र है जिसके प्रति आमजन में अगाध विश्वास लहराता रहा है। राजस्थान के दक्षिणांचल में घोटिया आम्बा पर हर साल लगने वाला मेला इस कारण विशिष्ट और अन्यतम है क्योंकि यह एकमात्र ऎसा मेला है जो विक्रम संवत वर्ष की समाप्ति और नव वर्ष के आगमन का साक्षी है।


महाभारतकाल की गाथाओं से सम्बन्ध जोड़ने वाले ढेरों कथानक इस स्थल से जुड़े हुए हैं। यहाँ पाण्डवों का मन्दिर है जिसमें घोटेश्वर शिव, पार्वती व गणेश, नन्दी आदि के अलावा पाण्डवों की सात मूर्तियाँ हैं जिनकी श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती हैं। जाने कितनी सदियों से पाण्डवाेंं की स्मृति में लगने वाला यह मेला आदिवासियों के लिए अगाध आस्था का केन्द्र हैं। धाम पर घोटेश्वर शिवालय के समीप पवित्र धूँणी, आश्रम, गौशाला, हनुमान मन्दिर व वाल्मीकि मन्दिर के अलावा दिव्य आम्र वृक्ष एवं पहाड़ों के गर्भ से रिसकर आने वाली जलराशि से भरे

प्राचीन कुण्ड हैं।

आरोग्य और पवित्रता देता है पाण्डव कुण्ड मेले में आने वाले लोग पाण्डव कुण्ड में स्नान कर अपने आपको पवित्र महसूस करते हैं। साल में कई अवसरोें पर अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन भी इसमें किया जाता है। मेले के दौरान् पवित्र एवं आरोग्यदायी इस कुण्ड में स्थान करने वाले मेलार्थियों का तांता लगा रहता है। यहाँ का नर्मदा कुण्ड बारहोंमास मधुर, शीतल एवं निर्मल पेयजल का स्रोत बना रहता ह। कई कुण्ड यहाँ बने हुए हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये महाभारतकाल मेंं पाण्डवों के स्नान हेतु प्रयोग में लाए जाते रहे हैं।


मनोहारी केलापानी

घोटेश्वर शिवालय से पहाड़ी रास्तों से होकर एक किलोमीटर दूर दुर्गम केलापानी स्थल है जहाँ महाबली भीम के गदा प्रहार से फूट निकला मनोहारी झरना और सघन वनश्री आच्छादित पहाड़ियाँ असीम आत्मतोष की वृष्टि करती हैं। यहाँ पाण्डवों की मूर्तियाँ व चरण चिह्न के अलावा राम मन्दिर, शिवालय हैं जिनमें सीता, लक्ष्मण, राम, शिव-पार्वती आदि की मूर्तियाँ सुशोभित हैं। पाण्डवों ने घोटिया आम्बा के पठार पर ऋषियों को केलों के पत्तों पर भोेजन परोसा था, उसी परम्परा में केले के झुरमुट यहाँ विद्यमान हैं जिनका दर्शन पुण्यदायक माना जाता है । इसके अलावा ऋषि-भोज से अवशिष्ट चावलों से यहाँ साल के पौधे उग आए। मान्यता है कि इन दुर्लभ चावलों को घर में रखने से बरकत होती है। इसी विश्वास के चलते मेलार्थी दुर्गम पहाड़ी घाटियों पर इन चावलों को ढूँढ़ने में व्यस्त रहते हैं व चावल के दाने मिल जाने पर अपने आपको धन्य समझते हैं।


कामनाएं पूरी करता है आम्र वृक्ष

यहीं पर पोैराणिक आख्यानों से जुड़ा आम्रवृक्ष मनोकामनापूर्ति करने वाले दिव्य वृक्ष के रूप में प्राचीनकाल से प्रसिद्ध रहा है। जनश्रुति के

अनुसार देवराज इन्द्र से प्राप्त गुठली को पाण्डवों ने यहाँ रोपा व यह तत्काल फलों से लदे विशाल आम्र वृक्ष के रूप में परिणत हो गया।

इसी दिव्य वृक्ष के फलों के रस से पाण्डवों ने यहाँ भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से ऋषियों को तृप्त किया और आशीर्वाद पाया।

गूंजता है पर्यावरण संरक्षण का पैगाम

ख़ासकर वंशवृद्वि की कामना से लोग घोटिया आम्बा के पौराणिक आम्र वृक्ष की बाधा लेते हैं व कामना पूरी हो जाने पर इस वृक्ष की विषम

संख्या में परिक्रमा करते हुए नारियलों का घेरा बनाकर पूजा करते हैं। वृक्ष के चबूतरे पर धूँणी में नारियलों के हवन का क्रम निरन्तर

बना रहता है, इससे समूचा परिक्षेत्र सुवासित बना रहता है। चबूतरे पर शिव-पार्वती, नन्दी, वराहवतार आदि मूर्तियाँ हैं।

घोटिया आम्बा के आश्रम में स्थित प्राचीन धूँणी का महत्व भी कोई कम नहीं हैं। यह लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती है।

संतानप्राप्ति की कामना पूरी होने पर लोग यहाँ आश्रम में धूँणी के सम्मुख छत पर पालना (बाँस से बना शिशु झूला) बाँधते हैं। पास में

वाल्मीकि मन्दिर और आश्रम धूंणी हैं जिनमें श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है। मेले के दिनों में साधु-संतों और भगतों का इसमें

डेरा लगा रहता है।

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