370 के बाद अब नागरिकता संशोधन बिल पर बढ़ेगी सरकार ?
लगातार दूसरी बार केंद्र की सत्ता में आने के बाद से ही आक्रामक दिख रही बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अब नागरिकता संशोधन विधेयक पर आगे बढ़ सकती है। सूत्रों के मुताबिक सोमवार से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में सरकार की ओर से इस विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में मंजूरी के लिए पेश किया जा सकता है। इस विधेयक के चलते संसद में विपक्षी दलों और सत्ता पक्ष के बीच घमासान भी देखने को मिल सकता है।
क्या है यह बिल और क्या हैं विपक्ष को ऐतराज - नागरिक संशोधन विधेयक के तहत 1955 के सिटिजनशिप ऐक्ट में बदलाव का प्रस्ताव है। इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आकर भारत में बसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है। इन समुदायों के उन लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जो बीते एक साल से लेकर 6 साल तक में भारत आकर बसे हैं। फिलहाल भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए यह अवधि 11 साल की है।
होम मिनिस्टर अमित शाह ने पिछले दिनों कहा था कि वह असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस लागू होने से पहले इसे लाना चाहते हैं। इससे एनआरसी में जगह न पाने वाले गैर-मुस्लिमों को राहत मिल सकेगी और उन्हें भारत का ही नागरिक माना जाएगा।
संविधान का उल्लंघन बता रहे विपक्षी दल - कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा है कि यह विधेयक संविधान का उल्लंघन करता है। विपक्ष का कहना है कि यह संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है, जो धार्मिक समानता की बात करता है।
पूर्वोत्तर के लोगों को पहचान खोने की आशंका - बता दें कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक बड़े वर्ग का कहना है कि अगर नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू किया जाता है तो पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा। सरमा ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक असम में लगभग चार से पांच लाख लोगों के लिए समस्याएं पैदा करेगा लेकिन यह राज्य में चहुंमुखी विकास सुनिश्चित करेगा।