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सब कुछ सहीं रहा तो सितम्बर तक कोरोना की वेक्सिन आ जायेगी, क्या यह दावा है, प्रचार से अरबो डॉलर कमाने का जरिया तो नहीं

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सब कुछ सहीं रहा तो सितम्बर तक कोरोना की वेक्सिन आ जायेगी, क्या यह दावा है, प्रचार से अरबो डॉलर कमाने का जरिया तो नहीं
@HelloBanswara - World -

पूरा विश्व आज कोरोना महामारी से झुज रहा है और आज यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे खत्म करने के लिए हमारे पास कोई हथियार ही नहीं है इसके लिए पुरे विश्व के वैज्ञानिक इसका वेक्सिन बनाने के लिए लगे हुवे है। 

वेक्सिन बनाने के कई देश ने दावे किये थे और टेस्ट भी हुवे थे और चल भी रहे है पर सारे दावे बाद में फ़ैल हो गए। पर इसी बिच अमेरिका की कंपनी मॉडर्ना ने दावा किया है कि उसने वेक्सिन तैयार कर ली है और ह्यूमन बॉडी पर ट्रायल भी चालू हो चूका है और अभी तक जो ट्रायल हुवा है वो सफल रहा है, अभी तक जिनकी बॉडी में वेक्सिन डाला है उनमे एंटीबाडी डेवलप हो गई है। कंपनी अब 600 लोगो पर इसका टेस्ट करेंगी जिसमे 50 प्रतिशत 18 से 35 साल के मध्य होंगे और बाकि 50 प्रतिशत 55 वर्ष से अधिक उम्र के होंगे। अगर ये ट्रायल कामयाब रहा तो 2500 लोगो पर इसका ट्रायल किया जायेगा। जिसमे कुछ कम उम्र के बच्चे भी होंगे। उसके बाद ही इसे अप्रूवल के लिए भेजा जाएगा। यह सभी टेस्ट होने में लगभग तीन से चार महीने का समय लगेगा, इसका मतलब अगर सब कुछ सहीं रहा तो सितम्बर तक वेक्सिन आ जाएगी। सबसे खास बात की यह कंपनी अपने इस वेक्सिन पर इतना विश्वास है कि अभी से कंपनी ने इसका प्रोडक्शन चालू कर दिया है और जानकारी के अनुसार कंपनी ने वेक्सिन का डोज बनाने के लिए भारतीय कंपनी को यह काम दिया है। सितम्बर तक 11 करोड़ वेक्सिन के डोज बना दिए जायेंगे। कंपनी का कहना है कि अगर सभी तरह के टेस्ट हो जायेंगे और सभी सिक्यूरिटी से टेस्ट निकलते है तभी यह डोज बाजार में आयेंगे और अगर कही भी अगर टेस्ट फ़ैल होता है तो सभी डोज को नष्ट कर दिया जाएगा।

इस कंपनी पर भरोसा इसलिए भी किया जा रहा है क्यूंकि इसी कम्पनी ने इबोला वायरस का वेक्सिन 9 माह में बनाया था।

परन्तु इस न्यूज़ के बाद अमेरिका के एक बड़े वैज्ञानिक ने कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने के दावों पर बड़े सवाल उठाए हैं. उन्होने कहा है कि उन्हे ये दावे एक तरह की बेइमानी नज़र आते हैं जिनसे लोगों का विज्ञान में विश्वास डोल सकता है. उन्होने वैक्सीन बनाने का दावा करने वाली कंपनी मॉडर्ना पर निशाना साधा है। और यह दावा विलियम हेसलटाइन ने किया है,  जिनके कैंसर, एचआईवी समेत अन्य प्रोजेक्ट्स पर किए काम की काफी चर्चा रही है।

इसके अलावा उन्होने वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख लिखा जिसमें उन्होने कहा,

"दवाओं और विज्ञान में आस्था का एक बड़ा कारण होता है विश्वास. लेकिन आज कोविड 19 का इलाज़ ढूंढने से जुडी रिसर्च की जानकारी को हड़बडी में सार्वजनिक किया जा रहा है और इससे विज्ञान और दवाओं में विश्वास डगमगा सकता है. प्राईवेट कंपनी, सरकार और रिसर्च संस्थान प्रैस कॉन्फ्रेंस कर के सफलता से पहले ही शोध का प्रचार कर रहे हैं. यह बात सही है कि कोई भी शोध तभी आगे बढ़ाया जाता है जब उसमें शुरूआती कामयाबी मिल जाती है. लेकिन उससे जुड़ा डेटा जिस के आधार पर कामयाबी की घोषणा होती है वो तुरंत उपलब्ध नहीं होता है जिसका आलोचनात्मक अध्य्यन किया जा सके." 

वो आगे लिखते हैं "इसी तरह की घटना है मॉडर्ना दवा कंपनी की घोषणा जिसमें इस कंपनी ने कोरोना वैक्सीन बनाने में कामायबी की बात कही. इसके बाद शेयर मार्केट में कंपनी को अरबों डॉलर का फ़ायदा हुआ क्योंकि उसके शेयर्स में ज़बरदस्त उछाल देखा गया. कंपनी ने बताया कि उसने 8 लोगों पर वैक्सीन का परिक्षण किया और इन सभी में वैक्सीन से कोरना की एंटी बॉडी तैयार हो गई. लेकिन कंपनी के इस दावे का परिक्षण करने का हमारे पास कोई उपाय नहीं है. यह एक तरह का घोटाला कहा जा सकता है."

वैसे जबसे मॉडर्ना ने अपनी शोध का ट्रायल प्रचार किया है तब ही से कंपनी के शेयर में बढ़ोतरी चालू हुई है क्यूंकि शोध की जानकारी 20 फ़रवरी से चालू है तब कंपनी का शेयर 18.59USD था और फिर उसके बाद कंपनी के शेयर बढ़ते गए और अभी 69USD तक पहुँच गया है। तो इसके बाद सवाल तो उठते है।

विलियम हेसलटाइन कहते हैं कि यह एक तरह से किसी कंपनी की प्रैस रिलीज़ को ख़बर बना कर छापना है. 

सीरम हो सकता है बेहतर इलाज 

हेसलटाइन के मुताबिक जानवरों पर कोविड-19 के रिसर्च वैक्सीन आजमाने से अब तक यह तो पता चला है कि इनसे मरीज के शरीर में, खासतौर से फेफड़ों में संक्रमण का असर कम होता देखा गया है। कुछ दवा कंपनियां अब इसी थेरेपी के मद्देनजर बेहतर और रिफाइंड सीरम तैयार कर रही हैं। प्रोफेसर विलियम भी इस विधि के सफल होने की काफी संभावना मानते हैं. उनका कहना है कि यह भविष्य में इसका पहला इलाज साबित हो सकता है क्योंकि ये एटी-बॉडी जिन्हें हाइपरइम्यून ग्लोब्यूलिन कहा जा रहा है, मानव शरीर के हर सेल में जाकर उसे वायरस को चित करने की क्षमता देती हैं।

कोरोना की वेक्सिन आ जाती है तो दुनिया के लिए बहुत अच्छा है पर इस ट्रायल से मान लेना की कोरोना वेक्सिन बन गई है का किया जा रहा दावा स्वीकारना शायद जल्दबाजी तो नहीं।

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