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100 साल पुरानी परंपरा, वागड़ में सूखे का संकट, बारिश हो इसलिए इंद्रदेव को रिझाने निकलती हैं महिलाएं

100 साल पुरानी परंपरा, वागड़ में सूखे का संकट, बारिश हो इसलिए इंद्रदेव को रिझाने निकलती हैं महिलाएं
@HelloBanswara - -

खास बात : इस दौरान रास्ते में पुरुषों के आने पर अपशकुन माना जाता है। इसलिए गांवों कोई भी पुरुष इनकेे सामने नहीं आते।  

आनंदपुरी/छाजा| सफेद धोती-कुर्ता, माथे पर पगड़ी और हाथों में हथियार। सड़क पर सैकड़ों की तादाद, पर ये पुरुष नहीं बल्कि महिलाएं हैं। यह दृश्य आनंदपुरी क्षेत्र में रविवार सुबह का है। मंशा किसी पर हमला नहीं बल्कि, अच्छी बारिश की कामना है। जी हां। यहां सूखे के संकट पर बारिश की मंशा से भगवान इंद्रदेव को रिझाने की 100 साल पुरानी ऐसी ही अनूठी परंपरा है। इसे स्थानीय भाषा में "धाड़' कहते हंै। यहां महिलाएं पुरुषों की परंपरागत पोषाक और हाथों में तलवार, धारिये और लट्ठ लेकर स्थानीय लोक गीत-गाते हुए निकलती हैं। माथे पर तिलक, हाथों में कड़े और मोजड़ी भी पहनती हैं। ये महिलाएं समूह में पैदल जुलूस के रूप में निकलकर स्थानीय लोकदेवता के मंदिर जाकर पूजन करती है। जहां गैर नृत्य कर भगवान को रिझाने की कोशिश करती हैं। 

मान्यता : ऐसी वेशभूषा और हथियारबंद होकर महिलाएं इसलिए निकलती है क्योंकि भगवान को यह दिखाना होता है कि अगर बारिश नहीं हुई तो सूखा पड़ेगा और लोगों के भोजन-पानी के लिए ऐसे ही एक-दूसरे पर हमले करने की आशंका गहरा जाएगी। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने पर भगवान इंद्र खुश होते हैं और अच्छी बारिश होती है।  

 

20 किमी तक पैदल चली महिलाएं, गैर नृत्य किया  
टामटिया गांव में रविवार सुबह धाड़ में बड़ी तादाद में सशस्त्र महिलाएं इकट्ठा हुई। इसके बाद धाड़ के रूप में छाजा, कांगलिया, सुंदराव, नवागांव, कथिरिया से होते हुए करीब 20 किमी पैदल घूमी। इस दौरान रास्ते में आने वाले घर-घर जाकर लोक गीत गाए, जहां ग्रामीणों ने चंदा भी दिया। इसके बाद महिलाएं शाम को छाजा के वागेश्वरी मंदिर पहुंचकर हवन में आहुतियां दी। वहां से टामटिया के मालादेवी मंदिर पहुंचकर भजन-कीर्तन और गैर नृत्य किए और रात को बली दी। अच्छी बारिश की कामना को लेकर वागड़ के कई गांवों में अलग-अलग परंपरा निभाई जाती है। गनोड़ा में गुड्‌डा-गुड्‌डी का विवाह तो बागीदौरा में श्रीकृष्ण को पालने में झुलाने की परंपरा भी है।

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