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वाटिकाओं पर 2 करोड़ से ज्यादा का बकाया, नगर परिषद काे 70 लाख देने पर समझाैता

वाटिकाओं पर 2 करोड़ से ज्यादा का बकाया, नगर परिषद काे 70 लाख देने पर समझाैता
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वाटिका संचालकाें अाैर नगर परिषद की बैठक में बैकफुट पर दिखे अधिकारी, अवैध रूप से चल रही वाटिकाओं को कराना होगा पंजीयन 

नगरीय विकास कर और पंजीयन शुल्क को लेकर नगर परिषद और वाटिका मालिकों के बीच लंबे समय से चल रही विवाद की स्थिति शुक्रवार को थम गई। नगर परिषद और वाटिका मालिकों के बीच बकाया राशि को जमा कराने के लिए समझौता हो गया। 

हालांकि नगर परिषद इस समझौता बैठक में पूरी तरह से घुटने टेकती नजर आई। परिषद के आयुक्त और आरआई समय पर शुल्क वसूल नहीं कर पाए तो यह बकाया राशि 2 करोड़ के करीब पहुंच गई। इतनी राशि देने से वाटिका मालिकों ने साफ इनकार कर दिया। बैठक में करीब 70 लाख रुपए बकाया शुल्क देने पर संचालक और परिषद के बीच सहमति बनी। दरअसल संचालकों का कहना था कि नगर परिषद ने नोटिस में नगर विकास और अनुमति शुल्क 2007 से जोड़ा है, जबकि वाटिकाएं 2010 के बाद से संचालित हैं। वाटिकाओं से नगरीय विकास कर का प्रावधान भी 2016 में बना है तो उसके बाद से ही यह टैक्स लिया जाना चाहिए। वाटिका मालिकों ने बताया कि विभाग से एक मॉडल आया था जिसमें वाटिका मालिकों से भी अनुमति शुल्क लेने के आदेश दिए।

आदेश में सभी जिलों के लिए समान दरें 20 रुपए प्रति वर्ग गज के हिसाब से रखी। ऐसे में कई छोटे जिलों में इस शुल्क को कम कर दिया गया। बांसवाड़ा में भी बोर्ड की मीटिंग में अनुमति शुल्क को करीब 5 रुपए वर्गगज किया गया। लेकिन बोर्ड में पारित प्रस्ताव को अनुमोदन के लिए नहीं भेजा गया। इस कारण बाद में ऑडिट के दौरान पुरानी दर के अनुसार ही ब्याज की राशि जोड़ कर वाटिकाओं पर करोड़ों का बकाया जोड़ दिया।

पंजीयन के दिन से चुकाना होगा अनुमति शुल्क  
परिषद के अधिकारियों ने बताया कि वाटिकाओं के बकाया में अनुमति शुल्क 2007 से जोड़ा गया था, जबकि संचालकाें का कहना था कि जब से पंजीयन कराया है, तब से अनुमति शुल्क लिया जाना चाहिए। वहीं नगर विकास कर का भी अधिनियम 2016 में लागू हुआ है तो उनकी मांग को ध्यान में रखते हुए यह शुल्क भी 2016 के बाद का लिया जाएगा। इधर अवैध वाटिकाओं पर निर्णय लिया गया कि हर एक को पंजीयन के लिए 20 हजार रुपए चुकाना होगा। गौरतलब है कि शहर में 16 वाटिकाएं अवैध चल रही हैं। वाटिका संचालकों ने बैठक के दौरान यह मुद्दा भी उठाया कि शहर के अंदर कई नोहरे और गार्डन, होटल संचालित हैं जो किराए पर कार्यक्रम कराते हैं, ऐसे में उनसे भी टैक्स की वसूली होनी चाहिए।

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