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होली

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होली  Holi

होली रंगों में रंगा रंगो का त्यौहार  - वागड़ की पहचान यहाँ के त्योहारों को मनाने के विभिन्न तरीको की वजह से भी होती है. यह पर्व वागड व मालवा में विशेष रूप से मनाया जाता. त्योहारों की श्रुंखला में रंगो से भरे इस त्यौहार होली का अपना यह महत्व यहाँ के लोगो का मनाने का तरीका, यहाँ के रीती रिवाज, यहाँ की रस्मे, यहाँ की संस्कृति, आदि कारणों की झलक यहाँ के इस होली के त्यौहार में देखने को मिलती है।

इस पर्व की शुरुवात बसंत ऋतु के जाने व पतझड़ के आने के समय, माघ माह की पूर्णिमा के दिन से शुरुवात होती है,  इस पूर्णिमा को होलिका रोपण व वागडी में इसे डांडा रोपण की पूनम भी कहते है. इस दिन से लगाकर फाल्गुन पूर्णिमा व चेत्र माह की अमावस तक इस पर्व को मनाया जाता है. हमें हमारे ग्रंथो से भक्त प्रहलाद व होलिका की गाथा को जानते है. इसे मनाने के तरीको की बात करे तो यह हमारा आदिवासी बाहुलीय वागड एरिया है. इस पर्व में हमारे भाई गेर नुत्य करते है,  इस नृत्य के वाध्य यंत्र ढोल, पुंगी(हंनायीय),टाशे, थाली, व पेरो में बांधने के बड़े घुंगरू होते है, जिन्हें महिलायें पारम्परिक परिधान साड़ी (डोडिया) व पुरुष धोती कुरते में इस नुत्य को करते है, समय की मांग के साथ इन परिधानों में अलग – अलग बदलाव आते रहते है, जिस नवविवाहितो को पहले जो संतान प्राप्ति होति है,  उस घर में ढूडोतस्व मनाया जाता है,  होली के कुछ दिन पहले यह दम्पति अपने रिश्तेदारों व परिचितों को अपने घर आमंत्रित करते है. यहा रिश्तेदार उस नवजन्म शिशु व नवविवाहित जोड़े के लिए उपहार लाते है. इन उपहारों में कपडे देने का विशेष चलन है.  इस उपहार स्वरूप कपड़ो में शिशु के माता-पिता के लिए साड़ी लहंगा व पिता के लिए पेंट शर्ट व शिशु के लिए पूरा सूट व टोपी (पूरा परिधान) होती है. इस दिन यहा मान मनुहार के लिए यहा आएं मेहमानों के लिए गृहस्वामी द्वारा भांग व आमल (अफीम) भी उनके सामने रखीजाती है  यहाँ इस दिन का विशेष खाना गुड के मालपुवे व दाल-चावल होते है. व रिश्तेदारों व गेरियो द्वरा इन दम्पतियों से गोठ लिजाती है जिसमे राशी उन दम्पति की स्वेछा द्वारा दिजाती है. समय के साथ हर बदलाव इस पर्व में होते रहे है. होली के दिन पूर्णिमा होने के कारण कई लोग अपनी स्वेछा से व्रत भी करते हे. फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन लोगो के निवास स्थान के आस-पास स्वेछा से लोग होलिका दहन के लिए लकडियो का प्रबन्ध करते है. व अधिकांश समय सांय काल व रात्रि के समय विशेष मुहर्त में महिलाओ द्वारा वहा स्थापित होलिका माता की पूजा की जाती है. व पूजा के पश्चात शहर, गाँव,कोलोनी व मोहल्ले वासियों सभी की उपस्थति में विशेष मंत्रो के उचार्ण के पच्चात होलिका दहन किया जाता है. व लोगो द्वारा जलती हुई होलिका के चारो और चक्कर लगाये जाते है. व सवस्थ जीवन की कामना की जाती है. मान्यता है की जलती हुई होली की लो को देखकर तिल की पपड़ी खायी जाती है तो शरीर के समस्त रोगों के दूर होने की सम्भावना होती है. होली की यह लो दुसरे दिन चेत्र माह की कृष्ण पक्ष एक्क्म तक यथावत जलती है. व इसी दिन लोग सारे गिले शिकवे भूल के एक-दुसरे को रंग लगाकर गले मिलते है. व रंग खेलने के लिए एक –दुसरे के घर जाते है. दोपहर के समय जिन दम्पतियों के घर ढूडोत्सव होता है वह दम्पति सभी परिचितों को होली चोक पे आमंत्रित करते है. व उन दम्पतियों के साथ उस नवजन्म शिशु को काका(अंकल) मामा द्वारा अपने हाथो में उठाकर होलिका के पूरी तरह जलने के बाद 3 से 7 चक्कर लगाये जाते है. व विशेष गुड से बनी मीठी पुडी व नारियल होलिका में विसर्जित किये जाते है.  इस कार्यक्रम को पंडित द्वारा मन्त्रो के उच्चारण के साथ किया जाता है. कहा जाता है की शिशु को होलिका पे ढूंडाने से शिशु पे भार नही रहता है व शिशु के उपर से वारिये (मिटटी के घड़े) उतर कर परिचितों में बाटेजाते है. व पतासे भांग गुलाल व गुड-देसी घी स निर्मित पपड़ी भी बाटी जाते है. समय स्थान के हिसाब से कुछ परिवर्तन इस पर्व में होते रहते है. धुलंडी के दुसरे दिन चेत्र माह के दूजके दिन जमाई बिज ( ज्म्राबिज) मनाई जाती हें. इस दिन ससुराल पक्ष में जमाई को भोजन का निमन्त्रण दिया जाता हे. जिन घरो में जमाई भोजन के लिए जाते हे वहां स्वेछा से ससुराल वाले जमाई की मान-मनुहार करते हें. व उन्हें उपहार स्वरूप माथे पे तिलक कर नारियल व पेसे दिए जाते हे जिसमे 21रु. से अपनी स्वेछा और मात्रा उपहार की बड़ाई जाती हे. और किसी कारण से ये स्वेछा से जमाई वहाभोजन पर नही जापाते हे तो उन घरो में पुड़ी-रोटी नही बनाई जाती हे. कहा जाता हे की जमाई जीमने आएतो आटे की लोई को तोडा जाता हे. अन्यथा घरो में इस दिन दाल-बाटी चूरमा, लड्डू का भोजन बनाया जाता है, व दिन से विभन्न मंदिरों में फाग मंडलियो द्वारा फाग गीत गाकर फाग मनाया जाता है. यह फाग गायन चेत्रकृष्ण अमावस तक गाया जाता है. व अलग- अलग लोक नुत्य मंडलिया फाग नृत्य व गाकर अपनी प्रस्तुतिय शहर, गाँव, कोलोनियो, व मोहल्लो में देती है जिसके उपहार स्वरूप लोग उन्हें पेसे देते है व अपनी पर्व की पहचान अपने तरीके देते है.  अलग-अलग जगह अलग-अलग पहचान व तरीको से इस त्यौहार को मनाया जाता है. यहाँ स्थानीय संस्कृति का वर्णन किया गया है. इस वर्ष 23 मार्च होली व 24 मार्च 2016 धुलंडी का त्यौहार है. जो पारम्परिक उत्साह से मनायी जाएगी.


बीमारीयों को खत्म करता है होली का ये त्यौहार
शिशिर ऋतु में ठंड के कारण शरीर में कफ बढ़ जाता है,  और वसंत ऋतु में तापमान बढऩे पर कफ शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं। यह अधिकतर बच्चों में अधिक होता है। और वसंत  मौसम में मध्यम तापमान शरीर के साथ साथ मन पर भी प्रभाव डालता है। यह मन में आलस्य पैदा करता है।  इस कारण होली उत्सव में आग जलाना, अग्नि परिक्रमा,  नाचना, गाना, खेलना आदि क्रियाएं शामिल की गई है,  और इसके कारण होली अग्नि से निकलने वाला ताप रोगाणुओं को नष्ट करता है और नाच गान, खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष जैसे कई रोगों से हमें मुक्ति दिलाता है और शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रखता है और बढ़ता है, और शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर होने पर मन के भाव भी बदलते हैं। मन उमंग से भर जाता है और नई कामनाएं पैदा करता है। इसलिए वसंत ऋतु को मादक, काम प्रधान और मोहक ऋतु माना जाता है।

Holi : The Festival Of Colours
India is the country of various culture, festivals and the home of multitalented people of different cultures and societies. The soul of our different cultures are there festivals. In these festivals there is a very joyful festival known as Holi it is also called a colour festival. This festival is majorly celebrated by Hindus it is celebrated in the month of “Chetra”. This festival is also celebrated in other countries of the world. The major concept or the history of the festival is very ancient, interesting story of “BhaktPrahlad”. We introduce you by the summary of story. Very long time ago there was king named “Hirankasyap” father of the Prahlad. Prahlad was a child but very brave and fearless child. His father was very big atheistic of God, he think that he is the God of whole Universe. But he is disappointed from the Prahlad because the Prahlad was a big Bhakt of God Vishnu.

Hirankasyapa’s sister known as Holika is blessed by the Surydev. She has a clothes which prevent the person from fire. She take the bhakt Prahlad in her arms and sit on the bundle of the dry wood and then flamed it. But the huge storm of wind blows and the clothes flew away from her body of Holika and fall on the Prahlad so the Holika burns into the fire and bhakt Prahlad return safely. The festival is named of the name of Holika the people of the city were so happy so they started to celebrate it by playing with colours called Gulal the festival of Holigeneraly comes in the season of basant when the old leaves of trees are fallen and new leaves come over it .the festival celebrated for two days in the night of first day the people come with there family and friends and the pile of wood set on fire. The people sing songs, beat drums, dance happily and share happiness with one another. Next morning people come out to sprinkle colours over each other. They rub Gulal to the faces of their friends and relatives. In the evening people go to meet their and offer sweets to each other. It signifies joy love and friendship. People forgets all petty differences past quarrels or misunderstandings and learn to live in peace. It develops a feelings of togetherness and brotherhood. 
On this festival we should also take the care of our natural resources because they are precious and limited in Holi the water is wasted in very high amount so we should avoid it and play dry Holi by Gulal. Every festival have its merits and demerits in Holi the demerits are children’s use chemically made colours which are harmful for our skin and may cause many diseases some people use mud or cow dunk to play Holi this is not hygienic sometime people gets overexcited and started to misbehave to another one, this can became the cause of fight so please remember these points and avoid it and aware more people about this. 
We wish a very great joyful, colourful and health hygienic Holi to you 
Happy Holi

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