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योग क्या है?

योग क्या है?
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Banswara July 19, 2018 सार रूप में कहें तो योग आध्यात्मिक अनुशासन एवं अत्यंत सूक्षम विज्ञान पर आधारित ज्ञान है जो मन और शरीर के बीच सामजस्य स्थापित करता है। यह स्वस्थ जीवन की कला एवं विज्ञान है। संस्कृत वाम्य के अनुसार योग शब्द युज़ धातु में घञ् प्रत्यय लगने से निष्पन हुआ है। पाडिनीय व्याकरण के अनुसार यह तीन अर्थो में प्रयुक्त होता है।(1.)- युज़ समाधो=समाधि(2.)-युजिर योगे=जोड़(3.)-युज़ संयमने=सामहजस्य। योगिक ग्रंथों के अनुसार,योग अभ्यास व्यकतिगत चेतनता को सर्वाभोमिक चेतनता के साथ एकाकार कर देता है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रहमण्ड में जो कुछ भी है वह परमाणू का प्रकटीकरण मात्र है। जिसने योग में इस अस्तित्व के एक्तव का अनुभव कर लिया है,उसे योगी कहा जाता है,योगी पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर मुक्तावस्ता को प्राप्त करता है।

इसे ही मुक्ति,निर्वाण,कैवल्य या मोक्ष कहा जाता है।
“योग” का प्रयोग आंतरिक विज्ञान के रूप में भी किया जाता है,जो विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओ का सम्मिलन है,जिसके माध्यम से शरीर एवं मन के बीच सामहजस्य स्थापित कर आत्म साक्षात्कार करता है।योग अभ्यास(साधना) का ऊदेश्य सभी त्रिविद प्रकार के दु:खों से आत्यंतिक निव्रति प्राप्त करना है,जिससे प्रत्येक व्यक्ति जीवन में पूर्ण स्वतंत्रता तथा स्वास्थ्य,प्रसन्नता एवं सामहजस्य का अनुभव कर सके।

योग के आधारभूत तथ्य 
व्यक्ति की शारीरिक क्षमता, उसके मन व भावनाए तथा ऊर्जा के अनूरूप योग कार्य करता है। इसे व्यापक रूप से चार वर्गो में विभाजित किया गया है: कर्मयोग में हम शरीर का प्रयोग करते है; ज्ञानयोग में मन का प्रयोग करते है;भक्तियोग में हम भावना का प्रयोग करते है और क्रिययोग में हम ऊर्जा का प्रयोग करते है। योग की जिस भी प्रणाली का हम अभ्यास करते हैं,वह एक दूसरे से आपस में कई स्तरों पर मिली-जुली होती हैं।

प्रत्येक व्यक्ति इन चारों योग कारकों का एक अदिव्तीय सहयोग है। केवल एक समर्थ गुरु(अध्यापक) ही योग साधक को उसके आवशयक्तानुसार आधारभूत योग सिद्धांतों का सहयोजन करा सकता है। “ योग की सभी प्राचीन व्याख्यायों में इस विषय पर अधिक बल दिया गया है कि समर्थ गुरु के मार्गदर्शन में अभ्यास करना अत्यंत आवश्यक है।”

स्वास्थ्य और कल्याण के लिए योगिक अभ्यास
योग साधनाओं में यम, नियम, आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि,बंध एवं मुद्रा,षट्कर्म,युक्ताहर,मंत्र-जप,युक्तकर्म आदि साधनाओं का अभ्यास सबसे अधिक किया जाता है। 
यम प्रतिरोधक एवं नियम अनुपालनीय हें। इन्हें योग अभ्यासों के लिए पूर्व अपेक्षित एवं अनिवार्य माना गया है। आसन का अभ्यास शरीर एवं मन में स्थायित्व लाने में सक्षम है,कुय्यार्त तदासनम स्थेर्यम अर्थात आसन का अभ्यास महत्वपूर्ण समय सीमा तक मनोदाहीक विधि पूर्वक अलग-अलग करने से स्वयं के अस्तित्व के प्रति दहिक स्थिति एवं स्थिर जागरूकता बनाए रखने की योग्यता प्रदान करता है।

प्राणायाम श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया का सुव्यवस्थित एवं नियमित अभ्यास है। यह श्वसन प्रक्रिया के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने तथा मन पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता करता है। अभ्यास की प्रारम्भिक अवस्था में श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया को सजगता पूर्वक किया जाता है। बाद में यह घटना नियमित रूप से नियंत्रित एवं निर्देशित प्रक्रिया के माध्यम से नियमित हो जाती है। प्राणायाम का अभ्यास नासिका,मुख,एवं शरीर के अन्य छिद्रों तथा शरीर के आंतरिक एवं बाहरी मार्गों तक जागरूकता बढ़ाता है। प्राणायाम अभ्यास के दोरान नियमित,नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के अंदर लेना पूरक कहलाता है, नियमित,नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के अंदर रोकने की अवस्था कुंभक तथा नियमित,नियंत्रित, और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के बाहर छोड़ना रेचक कहलाता है।

प्रत्याहार के अभ्यास से व्यक्ति अपनी इंद्रियो के माध्यम से सांसारिक विषय का त्याग कर अपने मन तथा चैतन्य केंद्र के एकीकरण का प्रयास करता है। धारणा का अभ्यास मनोयोग के व्यापक आधार क्षेत्र के एकीकरण का प्रयास करता है, यह एकीकरण बाद में ध्यान में परिवर्तित हो जाता है। इसी ध्यान में चिंतन(शरीर एवं मन के भीतर केन्द्रित ध्यान) एवं स्थिर रहने पर कुछ समय पश्चात यह समाधि की

अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
बंध एवं मुद्रा एसे योग अभ्यास है, जो प्राणायाम से संबन्धित है। ये उच्च योगिक अभ्यास के प्रसिद्ध रूप माने जाते है, जो मूख्य रूप से नियंत्रित श्वसन के साथ विशेष शारीरिक बंधो एवं विभिन्न मुद्राओं के द्वारा किए जाते हें। यही अभ्यास आगे चलकर मन पर नियंत्रण स्थापित करता है और उच्चतर योगिक सिद्धिओं के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। हालाकीं,ध्यान का अभ्यास,जो व्यक्ति को आत्मबोध एवं श्रेष्ठता की और ले जाता है, योग साधना पद्धती का सर माना गया है। 

षट्कर्म-शरीर एवं मन शोधन का सुव्यव्स्तिथ एवं नियमित अभ्यास है जो शरीर में एकत्रित हुए विषहेले पदार्थो को हटाने में साहयता प्रदान करता है। युकताहार स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त सुव्यवस्थित एवं नियमित भोजन का समर्थन करता है।

मंत्र जाप-मंत्रों का चिकित्सकीय पद्धति से उच्चारण ही जाप अथवा देवीय नाम कहलाता है। मंत्र जाप सकारात्मक मानसिक ऊर्जा की स्रष्टि करता है जो धीरे-धीरे तनाव से बाहर आने में सहायता करता है।
युक्तकर्म-स्वस्थ जीवन के लिए सम्यक(उचित) कर्म की प्रेरणा देता है।

सार
योग भारत के ऋषि-मुनियों द्वारा दिया गया एक अनमोल उपहार है। श्रीमदभगवतगिता में कहा गया है ‘समत्वह योग उच्यते’ अर्थात संभव ही योग कहलाता है।


योग सिर्फ आसन नहीं है बल्कि यह बिना किसी खर्च के फ़िटनेस और वेलनेस की गारंटी भी देता है। योग प्रातःकाल में की जाने वाली क्रिया मात्र नहीं है बल्कि यह रोज़मर्रा के कार्यो को दक्षता और पूरी सतर्कता के साथ करने की शक्ति भी है। रोग से निरोग होने का मार्ग योग है। योग हमारी सोच,कार्य,ज्ञान और समर्पण को बल देता है और हम बेहतर बनते चले जाते हें। योग से हम न केवल स्वयं को अच्छे से जान पाते हें अपितु यह दूसरों को समझने में भी हमारी मदद करता है। 

जब हम स्वयं को समझते है तो हम समाज के साथ एक रचनात्मक जुड़ाव बना लेते है।योग हुमे अपने परिवार,अपने समाज पशु-पक्षियों और समस्त संसार के साथ एक सूत्र में जुड़े होने की अनुभूति देता है। इस प्रकार योग ‘मेँ’ से ‘हम’ की अनोखी यात्रा है। आज व्यक्ति आधुनिक जीवन शैली से उपजी समस्यों से ग्रस्त है। तनाव,अवसाद(डिप्रेशन),मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारिया धीरे-धीरे व्यक्ति को मर रही है।योग इन सभी बीमारियो का समाधान देते हुए मन,शरीर और बुद्धि को संतुलित कर व्यक्ति के अंतर्दव्न्द और तनाव को खत्म कर आनंद देता है।
योगाभ्यास तनाव से मुक्ति पाने और मन को प्रसन्न व शांत रखने में अत्यंत मददगार है। दिनभर की थकान के बाद पानी से हाथ-मुह धोने से जैसी ताजगी मिलती है,उसी तरह आपाधापी के बीच थोड़ा-सा प्राणायाम या कुछ देर का शवासन हमें आराम और ऊर्जा देता है। योग उम्र,लिंग,जाति,पंथ,धर्म और राष्ट्र के बंधन और सीमाओं से परे है।योग किसी में भेद नहीं करता बल्कि यह तो बस अभ्यास करने की ईच्छ्हाशक्ति चाहता है।

अतिरेक की बीच सन्यमह और संतुलन है योग। दिमागी तनाव के बीच मन की शांति है योग। विचलित करने वाले पलों से निकालकर ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाता है योग। निराशा और भाय की बीच

योग आशा,शक्ति और साहस देता है।
योग मन को शांति देता है। वे लोग जिनके मन में शांति है वह दूसरों को भी शांति देते हें। इस प्रकार के लोग सोहार्दपूर्ण राष्ट्र का निर्माण करते है और ऐसे राष्ट्र सोहार्द से परिपूर्ण विश्व का निर्माण करते हैं।
योग तन,दिमाग,मन और ऊर्जा को एक ही दिशा में रखने की प्रोद्ध्योगिकी हैं।

 

 

Malot Study Point,
Dhawal Malot
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