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महाभारत काल की सच्चाई से उठ सकता है पर्दा, 4000 वर्ष पुराने अवशेष दे रहे हैं गवाही

महाभारत काल की सच्चाई से उठ सकता है पर्दा, 4000 वर्ष पुराने अवशेष दे रहे हैं गवाही
@HelloBanswara - -

Banswara May 02, 2019 -  3000-4000 साल पहले महाभारत काल में इंसानों की वेश-भूषा कैसी रही होगी? टीवी के पात्रों और किताबों में पढ़कर महाभारत काल को लेकर हमारी समझ कितनी सही है? बागपत के सिनौली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा कराई जा रही खोदाई से आने वाले सालों में इससे पर्दा उठ सकता है? खोदाई से शाही शव पेटिकाएं, रथ, कंकाल, आभूषण समेत कई ऐसी चीजें मिली हैं, जिन्हें महाभारत काल से जोड़कर देखा जा रहा है। इस बार खोदाई में एक चैंबर व दो और शव पेटिकाएं मिली हैं। इनमें जली लकड़ी के अवशेषों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस चैंबर को मृत देह को स्नान कराने व पूजा-पाठ के लिए उपयोग में लाया गया होगा। पुरातत्वविद सीधे तौर पर इसे महाभारत काल के समय की संस्कृति कहने से बच रहे हैं, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि यह हड़प्पा सभ्यता नहीं है। 

हड़प्पा के समानांतर या इससे पहले की संस्कृति है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत के सिनौली में अभी तक तीन बार खोदाई हो चुकी है। सबसे पहले वर्ष 2005-06 में खोदाई हुई थी। इसके बाद वर्ष 2018 में और फिर इस साल जनवरी में खोदाई का कार्य शुरू हुआ था। यह कार्य 31 मार्च को पूरा हो चुका है। खोदाई में जो साक्ष्य मिले हैं, वे नई सभ्यता की ओर इशारा कर रहे हैं। इस बार भी खोदाई पिछले साल वाले खोदाई स्थल के पास कराई गई। इसमें पिछले साल की तरह चार पाये वाली दो शाही शव पेटिकाएं मिली हैं, जो बहुत अधिक सुसज्जित हैं। इन लकड़ी की पेटिकाओं पर चूना मिट्टी के मनकों से बड़ी बारीकी से पच्चीकारी की गई है। इनमें महिलाओं के दो कंकाल हैं, जिनकी उम्र 30-40 साल की रही होगी। एक कंकाल की एक बाह में चूना मिट्टी का बाजूबंद मिला है। चेहरे पर सोने का एक टुकड़ा मिला है। 
अनुमान लगाया जा रहा है कि यह संभवत: अंतिम संस्कार के समय मुंह में डाला गया होगा या महिला ने सोना नाक में पहन रखा होगा। इसी शव पेटिका के नीचे चित्रकारी किया हुआ बाक्स मिला है, जो संभवत: श्रंगारदान रहा होगा। तांबे की फ्रेम वाला एक शीशा व सींग से बना एक कंघा मिला है। तांबे का एक बर्तन मिला है, जोकि लंबाई में है। दोनों शव पेटिकाओं के सिर की ओर 21 से अधिक मृदभांड मिले हैं। इनके पास एक विशेष चैंबर मिला है, जिसमें एक हवनकुंड है। इसमें लकड़ी के जले हुए टुकड़े मिले हैं। 
 

खोदाई कार्य से जुड़े एएसआइ के निदेशक डॉ. संजय मंजुल ने बताया कि इस तरह का विशेष चैंबर आज तक की किसी भी खोदाई में नहीं मिला है। इसे देखने से लगता है कि पेटिका में रखे जाने से पहले यहां शव को नहलाया जाता रहा होगा व पूजा-पाठ, हवन आदि का काम किया जाता रहा होगा। इस खोदाई स्थल से 200 मीटर दूर खोदाई में एक बसावट वाला स्थान भी मिला है, जहां तांबे को गलाने वाली चार भट्टियां मिली हैं। भट्टियों के पास ही तांबे को गलाने के कुछ अवशेष मिले हैं। पिछले साल इसी स्थान पर खोदाई में आठ शाही शव पेटिकाएं, तीन रथ, युद्ध का सामान मिला था। 

इस खोदाई में और हड़प्पा सभ्यता में क्या है अंतर :
हड़प्पा सभ्यता में मुख्य रूप से ताम्र सामान आदि की आकृति एक-दूसरे से अलग हैं। 
ताम्र हथियार बनाने की प्रक्रिया और उनके आकार हड़प्पा सभ्यता की किसी भी खोदाई में मिले साक्ष्यों से नहीं मिलते हैं। 
यहां मिले मनके आदि हड़प्पा तकनीक से अलग हैं। 
हड़प्पा सभ्यता के लिए अभी तक 500 स्थानों पर खोदाई हो चुकी है, लेकिन शवाधान में चार पाये वाली शव पेटिकाएं, रथ व युद्ध के समय उपयोग में लाए जाने वाले हथियार आदि किसी अन्य स्थान पर नहीं मिले हैं। 
यह हड़प्पा सभ्यता नहीं है 
डॉ. संजय मंजुल हम इतिहास में केवल हड़प्पा की बात करते हैं? लेकिन सवाल यह है कि हमारा देश इतना विशाल है और यहां क्या केवल एक ही संस्कृति के लोग रहते रहे होंगे। एक ही संस्कृति विकसित रही होगी, ऐसा कैसे हो सकता है। मैं इसी विषय पर काम कर रहा हूं कि यमुना से लेकर गंगा घाटी तक यह कौन सी संस्कृति थी। हमारा प्रयास इस संस्कृति को लेकर अंत तक जाना है, ताकि पूरे मामले से पर्दा उठाया जा सके। मैं यह बात साक्ष्यों के आधार पर कह रहा हूं कि यह हड़प्पा सभ्यता नहीं है। यहां मिले साक्ष्य हड़प्पा की संस्कृति से बिल्कुल मेल नहीं खाते हैं। यह संस्कृति यमुना और गंगा के बीच के इलाके में पुष्पित और पल्लवित हो रही थी।

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