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मंदसौर में शर्मसार!, पशुपतिनाथ की नगरी में ये वहशी कैसे?

मंदसौर में शर्मसार!, पशुपतिनाथ की नगरी में ये वहशी कैसे?
@HelloBanswara - -

Banswara July 31, 2018 26 जून। यह एक ऐसा दिन है, जिसे मंदसौर काला दिन के रूप में जानेगा। भगवान पशुपति नाथ के दर्शन के लिए जहां देशभर से लोग आते हैं। इस शहर में मैं भी कुछ समय बीता चुका हूं। इसलिए मंदसौर मैं शर्मिंदा हूं। क्योंकि भगवान पशुपति नाथ ही नगरी में ऐसा वहशी दंरीदा कैसे हो सकता है।  एक सात साल की नन्ही सी बेटी के साथ उस दिन जो हुआ उसके बाद ना कलम कुछ लिखने को तैयार थी। ना ही हलक से कुछ उतरने को था। एक दर्दनाक और हमें शर्म महसुस करने वाला यह दिन रहा। पूरा देश इस घटना के बाद अपने आपसे नजर मिलाने के लायक नहीं रहा, कारण केवल यह घटना या सात साल की यह मासूम नहीं थी। कारण था भारत में रहने वाले हर भारतीय नागरीक का जिसके परिवार में भी बेटी, बहू और माँ है। उस दिन शायद हर मां को अपनी कोख से बेटे के जन्म होने पर भी पछतावा हो रहा होगा और हर उस व्यक्ति को यह बात सता रही होगी की वह एक मर्द जात का है। जो केवल अपने स्वाभीमान और अभीमान की बात करता है पर कही उसी मर्द जात के कारण मंदसौर जैसी घटना होती हैं और एक नादान अंजान मासूम इस तरह की घटना का शिकार भी हो जाती है। भले हम कहते हो कि हमारे देश में नारीयों का सम्मान किया जाता है पूजा की जाती है, पर सबसे ज्यादा नारी का अपमान भी हमारे देश में ही होता है।

 
नारी का अपमान महाभारत की समय पांचाली के चीर हरण के वक्त हुआ, सती प्रथा ने नारी को अपमानीत किया। बेटे की जगह बेटी क जन्म पर भी नारी को अपमान सहना पड़ा, नारी को तब अपमान सहना पड़ा जब उसने पुरुष प्रधान इस देश में अपने सम्मान के लिए कदम बढाए। नारी तब भी अपमानीत हुई जब रामायण में एसी नारी पर दोष लगाएं गए जो गंगा की तरह पवित्र रही। यह सब बाते इसलिए नहीं बता रहा हूं कि आप अपने पुरुष होने पर या मर्द होने पर मैं आपको शर्मिंदा करना चाहता हूं, मेरा सवाल बस इतना है कि क्या यह सब करने के चक्कर में अब अपने सम्मान अपने अभिमान और अपने देश की नारी को संकट में तो नहीं डालते जा रहे हैं। मुझे यह भी यकिन है कि मेरे उस वक्त जब यह घटना हुई थी तब बोलने से कुछ बदला था ना अब कुछ बदलने वाला है। मंदसौर शहर जो कि दो दिनों तक एक बेटी के लिए खड़ा हुआ था, वह आज रोज की तरह चहलपहल से भरा हुआ है। क्या इतना कुछ करने के बाद मंदसौर बदल चुका है या देश में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले कम हो चुके हैं। क्या अब हर व्यक्ति अपने व्यापार, ऑफीस के लिए जाने से पहले अपनी पत्नी का माथा और माँ के चरणों को छुने के बाद घर से निकलता है। नहीं ऐसा कुछ भी देश में नहीं बदला है। बल्की इस बिच राजस्थान, यूपी और भी कई राज्यों में बेटियों की आबरु को छीना गया है, अब जहां घटना हुई है वहां के लोगों का घुस्सा खोला है। लेकिन घटना रुकी नहीं क्योकी हम केवल मोमबत्ती के साथ सांत्वना और श्रद्धांजली देना जानते हैं। हम भारतीय हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति और भारतीय होने के दावे पर बिल्कुल खरे नहीं उतर सकते हैं। हम साल में एक बार अपनी मां को खुश करके बहुत खुशी महसुस करते हैं, लेकिन जो मां अपने बारे में हर वक्त सोचती है लेकिन बाकी समय में शायद हमारी सोच पर ताले लग जाते है। सच कहा जाएं तो हम कभी महिला सम्मान को सही तरीके से नहीं कर पाएं है। देश में इस समय जिस प्रकार की घटनाएं हो रही है उस पर लिखना या बताना भी अब मुझे जायज नहीं लगता है। में भी लिख रहा हूं पर मेरा लिखा केवल आपको खुद से सवाल करने के लिए ही कहेंगा शायद आप खुद से सवाल करे और आपको कुछ ऐसे जवाब मिल जाए जो आपको बहुत कुछ समझा भी जाएं और बहुत कुछ समझाने के भी काबिल कर दे तो मेरा लिखा भी कुछ काम का नहीं है। भले आज हम कितनी ही तरक्की कर ले लेकिन विश्व के मानचित्र पर जिस तरह से हम जाने जा रहे है वह कलंक के समान है। यह कलंक तभी मिट सकता है जब हम अपना नजरीया बदले और दुसरे को भी उसी नजरीये से दुनिया दिखाए ताकी कोई इस तरह की घटना ना करे और बात कानुन की तो वह तो सख्त होना ही चाहिए।

 

By Vivek Upadhyay

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