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साल का एक वक्त जब इस मंदिर में भक्तों को मिलता है ‘पीरियड के खून से सना कपड़ा, लगता है आस्था का सैलाब

साल का एक वक्त जब इस मंदिर में भक्तों को मिलता है ‘पीरियड के खून से सना कपड़ा, लगता है आस्था का सैलाब
@HelloBanswara - -

साल का एक वक्त जब इस मंदिर में भक्तों को मिलता है ‘पीरियड के खून से सना कपड़ा, लगता है आस्था का सैलाब

Banswara November 27, 2017 देश के ठंडे प्रदेश असम के गुहाटी में स्थित एक मंदिर जो पीरियड के खून बहने की वजह से जाना जाता है। इसके प्रति आस्था तंत्र साधकों और ओघड़ों की आस्था का केंद्र है, यह मंदिर कामाख्या देवी के नाम से जाना जाता है। कामाख्या को ‘सती’ (जो कि भगवान शिव की पत्नी थीं) का एक अवतार माना जाता है। सती की मृत्यु के बाद, शिव ने तांडव नृत्य शुरू कर दिया था। उन्हें रोकने के लिए विष्णु ने अपना चक्र छोड़ा था। जिसने सती के शरीर को 51 हिस्सों में काट दिया था। ये 51 हिस्से धरती पर जहां-जहां गिरे, उन्हें ‘शक्तिपीठ’ का नाम दिया गया। इन्हीं में से एक हिस्सा वहां गिरा, जहां पर इस वक्त यह कामाख्या मंदिर है। सती का गर्भाशय जिस जगह पर गिरा था, उसका पता तब तक नहीं चल पाया था जब तक कामदेव ने उसे ढूंढा नहीं था। कामदेव ने शिव के श्राप से मुक्त होने के लिए इसे ढूंढा। कामदेव का शरीर तहस-नहस हो चुका था, लेकिन उन्होंने सती की योनि ढूंढकर उसकी पूजा की और अपना शरीर वापस पा लिया। इसलिए इस मंदिर या देवी को कामाख्या के नाम से जाना जाता है। यह तो हो गई मंदिर के बनने और कामाख्या देवी की पूजा की वजह। अब बात करते हैं असल मुद्दे कि जिससे आपको थोड़ा शर्मिदंगी जरूर होगी पर सच्चाई भी शायद यही है। इस मंदिर का मुख्य जो गर्भगृह (मेन हिस्सा) है उसमें देवी की कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक पत्थर है, जिसकी पूरा होती है, जो एक योनि के आकार का है। और जिसमें से प्राकृतिक पानी निकलता है। यहां एक मेला लगता है जो हर साल जून-जुलाई में लगता है। यह मेला तब से लग रहा है जब से यह मंदिर अस्तितव मे आया है। और एक और चौकानें वाली बात यह है कि यह मेला महीने के आखिरी चार दिनों में लगता है। ऐसा कहा जाता है कि ये वो चार दिन वो होते हैं। जब कामाख्या देवी को पीरियड आते हैं। और इस दरमियान मंदिर के दरवाज़े बंद रहते हैं। और यहां के लोगों का मानना है कि इस मंदिर के अंदर बने हुए एक छोटे से तालाब का पानी भी लाल रंग में बदल जाता है। प्रसाद के तौर पर देवी का निकलने वाला पानी या फिर अंगवस्त्र (लाल कपड़ा, जिससे देवी की योनि को ढका जाता है) मिलता है। यह सब हम आपको इसलिए नहीं बता रहे कि आप के दिलों में भी एसी श्रद्धा जागे और ना ही यह कहने के लिए की आप भी इस मेले में शामिल हो कर इस प्रसाद को प्राप्त करें। इसकी असल वजह कुछ और है। 
आगे की बात को जानने से पहले आप इन कुछ तस्विरों पर जरूर नजर घ़ुमाले ताकी आपके लिए यह सब समझ पाना थोड़ा आसान हो जाए। 

पहले किवदंतिया को जान ले जो लल्लनटोप ने अपने वेब पेज पर बता रखी है...
किवदंतियों के मुताबिक एक दिन कोच वंश के राजा नरनारायण को मालूम पड़ा कि देवी कामाख्या मंदिर में अवतरित हुई हैं। उनके पीरियड्स चल रहे हैं और वो योनि से खून बहाते हुए नग्न अवस्था में मंदिर में नृत्य कर रही हैं। राजा ने मंदिर के पुजारी को निर्देश दिए कि वो देवी को नाचते हुए देखना चाहता हैं। पुजारी ने राजा को चेताया कि ऐसा कर उसे देवी के क्रोध का भागी बनना पड़ सकता हैं। पर राजा ने सुना नहीं और मंदिर की दीवार की दरार से झांककर देवी को नाचते हुए देखने लगा। देवी ने उसे देख लिया और श्राप दिया कि अगर उसने आगे से कभी इस मंदिर में कदम रखा, तो उसका पूरा परिवार नष्ट हो जाएगा। राजा को बहुत दुख हुआ। अपराध बोध से भरे राजा ने अपने राज्य की सभी औरतों को ये निर्देश दिए कि माहवारी यानी पीरियड्स के समय वो घर के अंदर ही रहेंगी, ताकि कोई उन्हें देखे नहीं। ये कितनी दुखद, हास्यास्पद और इसके साथ-साथ क्रोध से भर देनी वाली बात है। नाचती हुई देवी को उनकी मर्जी के खिलाफ देखना राजा का दोष था। मगर सजा उसने अपने राज्य की सभी औरतों को दी, उन्हें घर में कैद कर। इस कहानी से औरत की ‘पवित्रता’ और पुरुष की सत्ता के बीच का रिश्ता स्पष्ट होता है।
अब वह बात जो आपके लिए थोड़ी शर्मिदंगी की है 

यह एक एेसा समय है जिसे हर महिला को इस वक्त से गुजरना पड़ता है और हमारे देश में आज भी इसे अपित्र माना जाता है। यहां तक की महिलाओं के साथ अछुतों जैसा व्यहवार किया जाता है। उनका खाना, पिना, रहना सब एक कमरे में सिमट कर रह जाता है। उनकी आजादी को बैडीयों से जकड़ दिया जाता है। चुल्हे चौके में उनके कदमों का पड़ना यानी घोर अपराध हो जाता है और एेसा ही कुछ जुड़ा हुआ है गुहाटी के कामाख्या देवी मंदिर से वहां देवी के पीरियड्स की वक्त उनके खुन को प्रसाद और देवी के आशीर्वाद के रूप में स्वीकार किया जाता है। अब आप के लिए यह बात क्यों शर्मनाक है आप समझ ही चुके होंगे। हां, पीरियड की ख़ुशी मनाना यकीनन कोई बुरी बात नहीं है। मगर दुख ये है कि सिर्फ देवी के पीरियड मनाए जाते हैं। आम औरतों के नहीं. मुझे इस पर्व से यही समस्या है- इसमें आम औरतें शामिल नहीं हैं। जहां एक ओर लोगों से कहा जाता है कि ‘देवी की योनि से निकले खून’ को माथे से लगाओ, उनकी भक्ति में झूमो, लेकिन दूसरी ओर असल जीवन में हम पीरियड और सेनेटरी नैपकिन पर बात नहीं करते। पर्व के दौरान गेस्ट बुलाए जाते हैं, वॉटर स्पोर्ट्स होते हैं, इस बात का ध्यान कोई नहीं रखता कि असल में दुनिया को आगे बढ़ाने वाली, बच्चे पैदा करने वाली औरतें इसमें आ ही नहीं पातीं. जैसे-जैसे इस पर्व की जानकारी देश भर में फैलती जा रही है, ऐसा लगता है कि हम औरतों और पीरियड के प्रति और चुप्पे होते जा रहे हैं। अब सौचने का काम आपका है की आप क्या चाहते है। क्या इसी तरह महिलाओं का तिरसकार होता रहेगा या हम बदलेंगे। या भले पढ़ लिखकर बड़ा ओहदा पा ले पर मानसिकता अब भी वैसी ही रखेंगे जैसी बरसों से हमारे पूर्वज करते आ रहे हैं। हम कब हकिकत में जिना शुरू कर पाएंगे। हमारे लिए तो अब भी यह एक सवाल ही है? और पता नहीं प्रश्न है कि क्या इस देश की हर एक नारी को समानता, नारी के सम्मान और देश के हितों के लिए हम एक हो पाएंगे। 

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