स्वतंत्रता सेनानियों और परिजनों से एक सवाल- आजादी के 70 साल कैसे?
स्वतंत्रता सेनानियों और परिजनों से एक सवाल- आजादी के 70 साल कैसे? How Are The Freedom Fighters
National – ग्वालियर 1971 में सत्यमेव जयते गीत लिखने वाले ग्वालियर के स्वतंत्रता सेनानी और गीतकार उद्धव कुमार कौशल ने 1984 तक अभाव का सामना किया। लेकिन देश के लिए जज्बा ऐसा था कि देश के लिए लिखे गाने की सारी रॉयल्टी सैनिकों के नाम कर गए। देर से सही, लेकिन हालात सुधरे हैं बेटे को मलाल है कि उस दौर में पैसा नहीं था लेकिन अब खुशी इस बात की हालात बदले हैं। स्वतंत्रता दिवस पर विशेष रिपोर्ट...
पापा के पास पैसों की तंगी थी लेकिन फिर भी उन्होंने अपने देशभक्ति के गीत के रिकार्ड से मिलने वाली रायल्टी की राशि राष्ट्रीय सुरक्षा कोष को भेंटकर दी। यह कहना है स्वतंत्रता सेनानी आैर गीतकार उद्धव कुमार कौशल के बेटे डॉ. प्रभात कौशल का। पापा के गीतों से पैसे तो बहुत मिले लेकिन उनके न रहने के बाद। ग्वालियर के कोटावाला मोहल्ला में 31 जुलाई 1920 को जन्मे उद्धव कुमार का गीत सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते 1971 में लाल किले से लता मंगेशकर की आवाज में गूंजा था। इसे संगीत दिया था जयदेव ने। गीत की पंक्तियां थीं- सत्य की मशाल आज राह जगमगा रही, सत्य की पुकार दुश्मनों का दिल हिला रही। आजादी की 25 वीं सालगिरह पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र से सम्मानित किया था। भारत छोड़ो आंदोलन में 10 महीने जेल में रहे उद्धव कुमार ने हम लोग छोटी बहू निर्मोही, जलजला, सरदार जैसी तमाम फिल्मों में गीत लिखे। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि गीत सबकुछ दे सकता है लेकिन आपके बच्चे को दूध के पैसे नहीं।
पहले इतनी कटुता नहीं थी अब लोग मेहनत नहीं करना चाहते: चौहान
1947 में विभाजन के दौरान कश्मीर में सरकार ने 10 दिन का समय और दिया होता तो आज पीओके भी भारत में होता और कश्मीर समस्या नहीं होती। 1971 का युद्ध भी सेना के प्लान पर लड़ा गया । हम 16 दिन में पाकिस्तान में पहुंच गए थे और 93 हजार सैनिकों का समर्पण कराया था। एक साल पाकिस्तानी सैनिक भारत में रहे ग्वालियर के मुरार कैंट में भी उन्हें रखा गया, लेकिन उनकी वापसी के समझौते में भी पीओके को नहीं मांगा गया। अन्यथा तस्वीर कुछ आैर ही होती। यह कहना है भारतीय सेना के सेवानिवृत कर्नल उमराव सिंह चौहान का। जिस देश की सेना कमजोर होगी वह मजबूत नहीं हो सकता, जब देश की सीमा सुरक्षित रहेगी तब देश विकास की ऊंचाई छू सकता है। उन्होंने कहा कि देश के नेताओं से जनता को पूछना चाहिए कि उनके परिवार से कोई सेना में कोई है या नहीं और नहीं है तो क्यों? नेता देश भक्त होने का ढिढोरा पीटते हैं तो अपने बच्चों को सीमा पर लड़ने क्यों नहीं भेजते। पहले लोग मेहनत से डरते नहीं थे, अब लोग मेहनत नहीं करना चाहते सब कुछ चापलूसी व शॉर्टकट से पाना चाहते हैं। अब अधिकार सब पाना चाहते हैं, लेकिन जिम्मेदारी व कर्तव्य का एहसास लोगों में नहीं है। इतनी कटुता और वैमनस्यता नहीं थी।
बदलाव तो बहुत हुआ पर वोटों के लिए बंट रहा है समाज : आेझा
आजादी के 70 सालों में देश में बदलाव तो बहुत हुआ। शहर सुविधाआें से भरा पूरा है। गांव में अब भी लाेग परेशान हो रहे हैं। वोटों की खातिर समाज को जातियों में बांटा जा रहा है। जबकि महात्मा गांधी जातिवाद को खत्म करने पर जोर देते थे। यह कहना है स्वतंत्रता सेनानी मख्खन लाल आेझा का। अपनी उम्र के 92 वर्ष पूरे कर चुके श्री आेझा कहते हैं- अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है। मूल रूप से चीनौर के निवासी श्री आेझा कहते हैं- आज शिक्षा, स्वास्थ, उद्योग, रोजगार के स्तर पर काफी कुछ बदला है लेकिन फिर भी गरीबी नहीं मिट सकी है। पहले की तरह अब भी लोगों के लिए यह एक समस्या है। एक आैर बदलाव देखने को मिलता है। पहले एक जमींदार हुआ करता था लेकिन आज तो कई जमींदार हो गए हैं। 1942 में मैं भूमिगत होकर आजादी की लड़ाई लड़ने वालों तक उनके लिए जरूरी सूचनाएं पहुंचाने का काम करता था। इसकी खबर गांव के जमींदार तक पहुंची तो उसने मुझे आैर मेरे परिवार को अपमानित कर गांव से निकलने का फरमान सुना दिया। घरवाले तो जैसे-तैसे गांव में ही रह गए लेकिन मुझे निकाल दिया गया। कुछ साल रिश्तेदारों ने शरण दी। बाद में उन्होंने भी भगा दिया। मैंने आंतरी में पैदा होने वाली पान की फसल पर कस्टम ड्यूटी लगाए जाने का विरोध किया था। उसी के बाद तत्कालीन सरकार मेरे पीछे पड़ गई।-bhaskar