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क्या सही मायने में हमने वीर क्रन्तिकारी सेनानियों के सपनो के भारत बनाया है....?

क्या सही मायने में हमने वीर क्रन्तिकारी सेनानियों के सपनो के भारत बनाया है....?
@HelloBanswara - -

72 वा स्वतन्त्रता दिवसः
सवाल करिये खुद से #

Banswara August 16, 2018 15 अगस्त, हम न्यूज में सुनेंगे तो पता चलेगा कि लाल किला से झंडा फहराकर आजादी के कशीदें पढ़े गए, हाँ हम आजाद आज ही के दिन हुए थे ऐसा किताबों में पढ़ा है ,टीवी पर भी सब बताते हैं | लेकिन भारत में समाज का एक बड़ा हिस्सा जिसके पास टी वी या रेडियो नहीं है  वो आजतक समझ ही नहीं पाया कि क्या आज़ादी ? क्या गुलामी ? न न आप फेसबुक और गूगल के लोग हैं आप गलत सोंच रहे हैं वाकई में बहुत लोगों के लिए टीवी सपने से कम नहीं, कभी बस्तर सुकमा जाकर देखिए | “इलाही वह भी दिन होगा जब राज अपना देखेंगे “ बिस्मिल आप जिस राज की कल्पना कर शहीद हुए वाकई में वो राज कभी आया ही नहीं ? किस राज कि बात कर रहे थे आप ? उस राज कि जिसमे म्यामार में कुछ मुस्लिमों पर अत्याचार के बदले में भारत में शहीद स्मारक तोड़ देंगे यहाँ के अल्पसंख्यक? या उस राज कि जहाँ बहुसंख्यकक समुदाय के आस्थाओ के प्रतीक गाय को बीच सड़क पर काट कर अपनी राजनीति करे ? या उस राज कि जिस राज में उपराष्ट्रपति शहीद स्मारक तोड़े जाने पर चुप रहता है, मालदा में दंगा पर चुप रहते है, निर्भया जैसा बर्बर रेप कांड पर चुप रहते है लेकिन कार्यकाल नहीं बढाए जाने पर उन्हें पूरे भारत का मुसलमान खतरे में नजर आने लगता है, अरे खतरे में तो हम सब है भारत के बहुसंख्यक भी खतरे में है जब कोई सांसद और उसका भाई कहता है कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो हम 76 करोड़ लोगों को मार देंगे, तब क्यों नहीं डांटे थे उपराष्ट्रपति जी उस सांसद को? उपराष्ट्रपति जी को भारत की मुस्लिम बहनों को तीन तलाक, बहु विवाह, हलाला जैसे कानून से खतरा नहीं दीखता बस उनके उपराष्ट्रपति पद के जाने से उन्हें पूरे मुसलमान खतरे में दिख गए ,अरे खतरा हंमे उन सभी रहनुमाओं से है जो अपने स्वार्थ के लिए बयान देकर पूरे भारत के मुसलमानों को क्रोध का शिकार बना देते हैं |और देश मे द्वेष का माहौल बना अपनी रोटियां सेकते है देश के समबेधनिक पद पूर्व या वर्तमान हो ऐसे व्यक्ति अगर ऐसी देश के प्रति सोच रखते है बह हम सबके लिए पूरे देश के लिए खतरा है अरे  देशभक्तों के लिए तो हर मुसलमान महात्मा कलाम और प्रेरणा अशफाक हैं | हम कहते हैं कि हम आजाद हैं,दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं ,आज लोकतंत्र सम्बेदना हीन हो रहा और संविधान के जानकार  कहते हैं कि लोकतंत्र में संवेदना ही उसकी जान है,क्या सच में आपको लगता है कि भारत में संवेदना बचा है लोगों के अन्दर या रहनुमाओं के अन्दर ?माफ़ करियेगा साहब अगर संवेदना होती तो अगस्त से अक्टूबर तक गोरखपुर में प्रतिदिन बच्चों के मरने की औसत संख्या 7 नहीं होती पिछले 10 सालों से |और स्वास्थ्य मंत्री को यह कहते तनिक भी शर्म नहीं आति कि “यहाँ तो हर साल बच्चों की मौत होती है “ हमारे साथ आजाद होकर इजराइल,चीन कहाँ से कहाँ चला गये औऱ हम चोटीकटवा ,मुंहनोचावा में उलझे रहे| अरे जब जापान मिथ्शुबिसी से अपने आर्थिक विकास का परचम विश्व पटल पर लहराने की तैयारी कर रहा था,इजराइल वैश्विक ताकत बन रहा था ,चीन दुनिया भर में अपने व्यापार को फैला रहा था,अमेरिका में गूगल जैसे कंपनी का विकास हो रहा था तब हम अहीर ,यादव,ब्राह्मण ठाकुर और बनिया  बनकर वोट बैंक बन या बना रहे थे |केवल नेताओं में ही नहीं संवेदना पूरे भारत की समाप्त हुई है तभी तो मुंबई में बूढी महिला के पास बेटा तब पहुंचा जब उसकी माँ की लाश सड़ कर कंकाल बन चुकी थी ,आपको क्या लगता है यहाँ पूरी गलती केवल बेटे की थी ?नहीं माँ की भी थी अरे जब बेटे को “वसुधैव कुटुम्बकम “सिखाना होता है तो माँ-बाप उसी उम्र में उसे अपना-पराया सिखा देते हैं,जब कराग्रे वसते लक्ष्मी सिखाना होता है तो ट्विंकल –ट्विंकल लिटिल स्टार सिखाते हैं,पांव छूने की जगह हाय –बाय सिखाते हैं ,सबके साथ मिलकर सुख-दुःख बांटकर रहने के बजाए सिखाते हैं कि अपने काम से काम रखो |जब माँ-बाप खुद ही बच्चे को इस प्रकार प्रोफेशनल मशीन होने की शिक्षा बचपन से ताउम्र दे रहे हैं तो  फिर किस अधिकार से सोंचते हैं वो बच्चा बड़ा होने पर उनसे स्नेह रखेगा ? अगर सच कहै तो पूरे भारत में सब गिद्ध की प्रवति के लोग अधिक है जो देश को ,समाज को जैसा नोच पा रहा है नोच कर खा रहै है और हाँ कृपया अब हर तो  15 अगस्त ,26 जनवरी को देश के महापर्व मनाना उन क्रन्तिकारियो का अपमान सा लगता है ,सही मायने में यही सच्ची श्रधांजिली होगी उन स्वतन्त्रता सेनानियों को हम  हर जगह सच्चाई बोले आइना दिखाएँ छद्म नेतृत्वकर्ताओं को ताकि हमारे देश से गिद्धों प्रवर्ति की मानसिकता के लोग समाप्त हो स्वतन्त्रता सेनानियों के सपनों के भारत का निर्माण हो |अब छलावा सा लगता है स्वम् से  “सारे जहाँ से अच्छा” गाने से,कितनी झूठी प्रशंसा कर सकता है कोई ?


अब तो सच में बस  ये यह ग़ज़ल है आज के भारत पर
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं,
ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दुस्तान
देखते की मुल्क सारा यूँ टशन में, थ्रिल में है,
आज का नेतृत्वकर्ता ये कहते हम तो बिस्मिल थक गए,
अपनी आज़ादी तो भैय्या विदेशी बैंको के खाते में हैं,
आज के जलसों में बिस्मिल एक गूंगा गा रहा,
औ बहरों का वो रेला नाचता महफिल में है,
हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया,
आज तो चड्ढी भी सिलती इंग्लिशों के मिल में है ….

 लक्ष्मीकांत तिवारी
सामाजिक कार्यकर्ता

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